1. हिमालय पर्वत (अमर जीव, यति, योगी, प्रेत और लाल हिम)
हिमालय देखने में जितना ही बड़ा है, उससे उतनी ही रहस्यमयी कहानियां भी जुड़ी हुईं है. कहा जाता है कि हिमालय में जगह-जगह पर ‘यति’ और अमरत्व प्राप्त कर चुके जीव रहते हैं.
यहां हिममानव भी रहते हैं जो तिब्बत और नेपाल के इलाके में अक्सर देखे जाते हैं. यहां के पर्वतारोहियों ने रहस्यमयी लाल हिम वर्षा को भी देखा है. यहां की हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी ध्यानमग्न योगियों को देखा जा सकता है, जो किसी आश्चर्य से कम नहीं. इस हिमालय के दर्रों और कंदराओं में न जाने कितने लोग अपनी जानें गंवा चुके हैं और यहां के सुरक्षा के लिए कार्यरत सैनिकों ने भी अजीबोगरीब आकृतियां यहां देखी हैं.
2. कुलधारा – राजस्थान (प्रेत शहर)
राजस्थान राज्य के जैसलमेर ज़िले में यह गांव स्थित है, जिसे 1800 के आस-पास खाली कर यहां के बासिंदे न जाने कहां चले गए थे. कहा जाता है कि यह गांव श्रापित है. आज इस गांव में कोई नहीं रखता. मगर हमेशा से ऐसा नहीं था कि, किसी दौर में यह पालिवाल ब्राम्हणों के द्वारा बसाया गया बेहद सम्पन्न गांव हुआ करता था. अगर किस्से-कहानियों पर विश्वास किया जाए तो, यहां की पुरानी रियासत में एक सालिम सिंह नाम का एक मंत्री हुआ करता था. जिसका दिल पालिवाल ब्राम्हणों के मुखिया की लड़की पर आ गया. सालिम सिंह ने शादी की बात आगे बढ़ायी और शादी न करने पर उन्हें ज्यादा टैक्स का खौफ़ दिखाया. मगर पालिवाल ब्राम्हण भी कहां मानने वाले थे कि सन् 1825 की एक अंधेरी रात में इस गांव के मुखिया समेत 83 लोग यहां से कभी न लौटने के लिए पलायन कर गए, जिसके बाद उनमें से किसी को भी नहीं देखा गया. और तब से ही इस गांव में कोई नहीं रहता.
3. कोट्टयम, इदुक्की – केरल (लाल बारिश)
केरल प्रांत के उत्तरी भाग में पड़ने वाले कोट्टयम और इदुक्की ज़िले में 25 जुलाई से 23 सितम्बर 2001 में ऐसा लगा जैसा कि ख़ून की बारिश हो रही हो. सन् 1986 से अब तक कई बार ऐसी बारिश इन इलाकों में हो चुकी हैं. इस बारिश पर पूरी मीडिया की नज़र तब पड़ी जब महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसका संज्ञान लिया. पहले-पहल तो इसे गिरते उल्का पिंडों की वजह से बताया गया. मगर और खोजबीन के बाद पता चला कि यहां के इलाके के पेड़ों, पहाड़ों में इस तरह के algae की अधिकता है जो लाल बारिश का कारण हो सकते हैं.
4. बंगाल के दलदल – पश्चिम बंगाल (अलेया प्रेत रोशनी)
अलेया रोशनी या फ़िर दलदली रोशनी के नाम से कुख्यात यह रोशनी पश्चिम बंगाल के मछुआरों के बीच ख़ासा चर्चित टर्म है. कहा जाता है कि इन रोशनियों की ओर आकर्षित होकर जाने वाले मछुआरे दलदलों के बीच फंस कर रह जाते हैं. मगर इन रोशनियों के मामले में सब-कुछ खराब ही नहीं है कि, कई बार ये रोशनियां लोगों को आने वाले खतरे से आगाह भी करती हैं.
5. बन्नी ग्रासलैंड रिजर्व – कच्छ का रण (चिर बत्ती)
बन्नी ग्रासलैंड के नाम से चर्चित यह लैंड रिजर्व गुजरात प्रांत के कच्छ रेगिस्तान के सुदूर दक्षिण में स्थित है. यह एक मौसमी ग्रासलैंड है जो हर साल मॉनसून के दिनों में बन जाता है. रात के दौरान यहां रहने वाले स्थानीय यहां अजीबोगरीब डांस लाइट्स का जिक्र करते हैं, जिन्हें लोग ‘चीर बत्ती’ के नाम से जानते हैं. “चीर बत्ती” को लेकर लोगों का कहना है कि यह कभी तीर के रफ़्तार से भागती नज़र आती है तो कभी बिल्कुल ही एक जगह पर खड़ी. यहां के रहने वाले ऐसे नज़ारे सदियों से देखते आ रहे हैं. कई लोग तो यहां तक कहते हैं कि ये रोशनियां उनका पीछा भी करती हैं. मगर वैज्ञानिकों का कहना है कि इन दलदली मैदानों से निकलने वाली मीथेन गैस का ऑक्सिडेशन भी इसकी एक वजह हो सकती है.
6. गंगा और ब्रम्हपुत्रा डेल्टा की अस्पष्ट आवाज़ें (मिस्टपौफर्स्, बैरिसल बंदूकें)
कहा जाता है कि गंगा और ब्रम्हपुत्रा के डेल्टा इलाकों में इन नदियों के बीच और किनारों पर घर्षण की आवाज़ सुनी जा सकती है, जिसे सुनने पर लगता है जैसे सुपरसोनिक जेट आस-पास उड़ रहे हों. अलग-अलग लोगों ने उनके अनुसार इसके पीछे भूकम्प, मिट्टी के तूफ़ान, सूनामी, उल्कापिंडों और हवाई गुबारों को इसकी वजह बताया है, मगर बड़े-बड़े दिग्गजों को आज भी ये आवाज़ें और उनके पीछे की वजह परेशान करती हैं.
7. कोंगका ला पास – अक्साई चीन, लद्दाख ( इंडो-चाइनिज यू.एफ.ओ. बेस)
कोंग्का ला पास हिमालय के अक्साई चीन के नज़दीक इंडो-चाइना के नजदीक विवादित स्थान है. चीनी लोगों के बीच यह स्थान अक्साई चीन और इंडियंस के बीच इस जगह को लद्दाख के नाम से जानते हैं. पूरी दुनिया में इसे सबसे निर्जन इलाके के तौर पर जानते हैं, और समझौते के अनुसार इस इलाके में कोई पैट्रोलिंग नहीं करता. इस इलाके में रहने वाले स्थानीय बताते हैं कि इस इलाके में यू.एफ.ओ. बेस हैं जिसकी जानकारी दोनों देशों को है. इस इलाके के टूरिस्ट परमिट होने के बावजूद यहां पर्यटकों के जाने पर पाबंदी है.
8. रूपकुंड झील – उत्तराखंड (कंकाल झील)
रूपकुंड झील एक ग्लेसियर की मदद से बनी झील है, जो उत्तराखंड राज्य में स्थापित है. सन् 1942 में यहां कार्यरत एक गार्ड यहां पड़ी कंकालों के अंबार पर गिर पड़ा. बीतते समय के साथ-साथ यूरोपीय और भारतीय खोजकर्ताओं ने पूरी कोशिश की कि वे इन कंकालों की गुत्थियों को सुलझा सकें, मगर वे इसमें सफल न हो सके. अलग-अलग थ्योरियों की मानें तो यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सैनिकों के कंकाल हैं, वहीं एक थ्योरी के अनुसार यह कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उसके आदमियों की कंकालें हैं. एक और थ्योरी के अनुसार यह मोहम्मद तुगलक के लड़ाकों की गढ़वाल को जीतने की नाकाम कोशिश थी. कार्बन डेटिंग के अनुसार ये नरकंकालें 12वीं से 15वीं सदी के बीच की बताई जाती हैं. मगर आज भी इनके पीछे की वजहों को कोई नहीं जान सका है.
9. जातिंगा – आसाम (सामूहिक पक्षी आत्महत्या)
सुनने में ही यह ख़बर कितनी अजीबोगरीब लगती है, मगर है यह बिल्कुल सच. आसाम के दिमा हसाओ ज़िले के जतिंगा गांव में आने वाले प्रवासी पक्षी ख़ुद की जान लिए बगैर यहां से वापस नहीं लौटते. और इस ख़बर को और भयानक यह बनाता है कि सितंबर से अक्टूबर के बीच की अमावस्या को शाम 6:00 से 09:30 के बीच अपनी जान दे देते हैं. और ये सामूहिक आत्महत्याएं जो सदियों से होती आ रही हैं, मगर आज जब हम टेक्नोलॉजी और विज्ञान में इतने आगे जा चुके हैं कि चंद्रमा और मंगल ग्रह हमारे जद में हैं, लेकिन हम इन गुत्थियों को अब तक नहीं सुलझा सके हैं.
हिमालय देखने में जितना ही बड़ा है, उससे उतनी ही रहस्यमयी कहानियां भी जुड़ी हुईं है. कहा जाता है कि हिमालय में जगह-जगह पर ‘यति’ और अमरत्व प्राप्त कर चुके जीव रहते हैं.
यहां हिममानव भी रहते हैं जो तिब्बत और नेपाल के इलाके में अक्सर देखे जाते हैं. यहां के पर्वतारोहियों ने रहस्यमयी लाल हिम वर्षा को भी देखा है. यहां की हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी ध्यानमग्न योगियों को देखा जा सकता है, जो किसी आश्चर्य से कम नहीं. इस हिमालय के दर्रों और कंदराओं में न जाने कितने लोग अपनी जानें गंवा चुके हैं और यहां के सुरक्षा के लिए कार्यरत सैनिकों ने भी अजीबोगरीब आकृतियां यहां देखी हैं.
2. कुलधारा – राजस्थान (प्रेत शहर)
राजस्थान राज्य के जैसलमेर ज़िले में यह गांव स्थित है, जिसे 1800 के आस-पास खाली कर यहां के बासिंदे न जाने कहां चले गए थे. कहा जाता है कि यह गांव श्रापित है. आज इस गांव में कोई नहीं रखता. मगर हमेशा से ऐसा नहीं था कि, किसी दौर में यह पालिवाल ब्राम्हणों के द्वारा बसाया गया बेहद सम्पन्न गांव हुआ करता था. अगर किस्से-कहानियों पर विश्वास किया जाए तो, यहां की पुरानी रियासत में एक सालिम सिंह नाम का एक मंत्री हुआ करता था. जिसका दिल पालिवाल ब्राम्हणों के मुखिया की लड़की पर आ गया. सालिम सिंह ने शादी की बात आगे बढ़ायी और शादी न करने पर उन्हें ज्यादा टैक्स का खौफ़ दिखाया. मगर पालिवाल ब्राम्हण भी कहां मानने वाले थे कि सन् 1825 की एक अंधेरी रात में इस गांव के मुखिया समेत 83 लोग यहां से कभी न लौटने के लिए पलायन कर गए, जिसके बाद उनमें से किसी को भी नहीं देखा गया. और तब से ही इस गांव में कोई नहीं रहता.
3. कोट्टयम, इदुक्की – केरल (लाल बारिश)
केरल प्रांत के उत्तरी भाग में पड़ने वाले कोट्टयम और इदुक्की ज़िले में 25 जुलाई से 23 सितम्बर 2001 में ऐसा लगा जैसा कि ख़ून की बारिश हो रही हो. सन् 1986 से अब तक कई बार ऐसी बारिश इन इलाकों में हो चुकी हैं. इस बारिश पर पूरी मीडिया की नज़र तब पड़ी जब महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसका संज्ञान लिया. पहले-पहल तो इसे गिरते उल्का पिंडों की वजह से बताया गया. मगर और खोजबीन के बाद पता चला कि यहां के इलाके के पेड़ों, पहाड़ों में इस तरह के algae की अधिकता है जो लाल बारिश का कारण हो सकते हैं.
4. बंगाल के दलदल – पश्चिम बंगाल (अलेया प्रेत रोशनी)
अलेया रोशनी या फ़िर दलदली रोशनी के नाम से कुख्यात यह रोशनी पश्चिम बंगाल के मछुआरों के बीच ख़ासा चर्चित टर्म है. कहा जाता है कि इन रोशनियों की ओर आकर्षित होकर जाने वाले मछुआरे दलदलों के बीच फंस कर रह जाते हैं. मगर इन रोशनियों के मामले में सब-कुछ खराब ही नहीं है कि, कई बार ये रोशनियां लोगों को आने वाले खतरे से आगाह भी करती हैं.
5. बन्नी ग्रासलैंड रिजर्व – कच्छ का रण (चिर बत्ती)
बन्नी ग्रासलैंड के नाम से चर्चित यह लैंड रिजर्व गुजरात प्रांत के कच्छ रेगिस्तान के सुदूर दक्षिण में स्थित है. यह एक मौसमी ग्रासलैंड है जो हर साल मॉनसून के दिनों में बन जाता है. रात के दौरान यहां रहने वाले स्थानीय यहां अजीबोगरीब डांस लाइट्स का जिक्र करते हैं, जिन्हें लोग ‘चीर बत्ती’ के नाम से जानते हैं. “चीर बत्ती” को लेकर लोगों का कहना है कि यह कभी तीर के रफ़्तार से भागती नज़र आती है तो कभी बिल्कुल ही एक जगह पर खड़ी. यहां के रहने वाले ऐसे नज़ारे सदियों से देखते आ रहे हैं. कई लोग तो यहां तक कहते हैं कि ये रोशनियां उनका पीछा भी करती हैं. मगर वैज्ञानिकों का कहना है कि इन दलदली मैदानों से निकलने वाली मीथेन गैस का ऑक्सिडेशन भी इसकी एक वजह हो सकती है.
6. गंगा और ब्रम्हपुत्रा डेल्टा की अस्पष्ट आवाज़ें (मिस्टपौफर्स्, बैरिसल बंदूकें)
कहा जाता है कि गंगा और ब्रम्हपुत्रा के डेल्टा इलाकों में इन नदियों के बीच और किनारों पर घर्षण की आवाज़ सुनी जा सकती है, जिसे सुनने पर लगता है जैसे सुपरसोनिक जेट आस-पास उड़ रहे हों. अलग-अलग लोगों ने उनके अनुसार इसके पीछे भूकम्प, मिट्टी के तूफ़ान, सूनामी, उल्कापिंडों और हवाई गुबारों को इसकी वजह बताया है, मगर बड़े-बड़े दिग्गजों को आज भी ये आवाज़ें और उनके पीछे की वजह परेशान करती हैं.
7. कोंगका ला पास – अक्साई चीन, लद्दाख ( इंडो-चाइनिज यू.एफ.ओ. बेस)
कोंग्का ला पास हिमालय के अक्साई चीन के नज़दीक इंडो-चाइना के नजदीक विवादित स्थान है. चीनी लोगों के बीच यह स्थान अक्साई चीन और इंडियंस के बीच इस जगह को लद्दाख के नाम से जानते हैं. पूरी दुनिया में इसे सबसे निर्जन इलाके के तौर पर जानते हैं, और समझौते के अनुसार इस इलाके में कोई पैट्रोलिंग नहीं करता. इस इलाके में रहने वाले स्थानीय बताते हैं कि इस इलाके में यू.एफ.ओ. बेस हैं जिसकी जानकारी दोनों देशों को है. इस इलाके के टूरिस्ट परमिट होने के बावजूद यहां पर्यटकों के जाने पर पाबंदी है.
8. रूपकुंड झील – उत्तराखंड (कंकाल झील)
रूपकुंड झील एक ग्लेसियर की मदद से बनी झील है, जो उत्तराखंड राज्य में स्थापित है. सन् 1942 में यहां कार्यरत एक गार्ड यहां पड़ी कंकालों के अंबार पर गिर पड़ा. बीतते समय के साथ-साथ यूरोपीय और भारतीय खोजकर्ताओं ने पूरी कोशिश की कि वे इन कंकालों की गुत्थियों को सुलझा सकें, मगर वे इसमें सफल न हो सके. अलग-अलग थ्योरियों की मानें तो यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सैनिकों के कंकाल हैं, वहीं एक थ्योरी के अनुसार यह कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उसके आदमियों की कंकालें हैं. एक और थ्योरी के अनुसार यह मोहम्मद तुगलक के लड़ाकों की गढ़वाल को जीतने की नाकाम कोशिश थी. कार्बन डेटिंग के अनुसार ये नरकंकालें 12वीं से 15वीं सदी के बीच की बताई जाती हैं. मगर आज भी इनके पीछे की वजहों को कोई नहीं जान सका है.
9. जातिंगा – आसाम (सामूहिक पक्षी आत्महत्या)
सुनने में ही यह ख़बर कितनी अजीबोगरीब लगती है, मगर है यह बिल्कुल सच. आसाम के दिमा हसाओ ज़िले के जतिंगा गांव में आने वाले प्रवासी पक्षी ख़ुद की जान लिए बगैर यहां से वापस नहीं लौटते. और इस ख़बर को और भयानक यह बनाता है कि सितंबर से अक्टूबर के बीच की अमावस्या को शाम 6:00 से 09:30 के बीच अपनी जान दे देते हैं. और ये सामूहिक आत्महत्याएं जो सदियों से होती आ रही हैं, मगर आज जब हम टेक्नोलॉजी और विज्ञान में इतने आगे जा चुके हैं कि चंद्रमा और मंगल ग्रह हमारे जद में हैं, लेकिन हम इन गुत्थियों को अब तक नहीं सुलझा सके हैं.